नीम का पेड़

नीम का पेड़ 
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 नीम में पाई जाने वाली सर्वाधिक उपयोगी और मूल्यवान वृक्ष-प्रजातियों में से एक है। यह पीएच 10 तक की अनेक प्रकार की मिटि्टयों में उग सकता है, जो कि इसे भारतीय उप महाद्वीप में एक सर्वाधिक बहुआयामी और महत्वपूर्ण वृक्ष बनाता है। इसके अनेक प्रकार के उपयोगों की वजह से, भारतीय कृषकों द्वारा इसकी खेती वैदिक काल से की गई है और अब यह भारतीय संस्कृति का अंग बन गया है। भारत में, यह पूरे देश में पाया जाता है और, ऊंचे एवं ठंडे क्षेत्रों तथा बांध-स्थलों को छोड़कर, हर प्रकार के कृषि-जलवायु अंचलों में अच्छी तरह उग सकता है। सच बात तो यह है कि भारत में नीम के वृक्ष, फसलों को कोई नुकसान पहुंचाए बिना, अक्सर कृषकों के खेतों में और खेतों की मेड़ों पर छितरे हुए रूप में उगे हुए पाये जाते हैं। कृषक इस प्रणाली को केवल निर्माण-काष्ठ, चारे, ईंधन के रूप में काम में आने वाली लकड़ी की स्थानीय मांग को पूरा करने के लिए और विभिन्न औषधीय गुणों के लिए अपनाते हैं। इसकी मुसलमूल प्रणाली की वजह से, यह मिट्टी में उपलब्ध अल्प नमी के लिए वार्षिक फसलों से प्रतिस्पर्द्धा नहीं करता।
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नीम के वृक्ष को इसके अनेक प्रकार के उपयोगों के कारण सही अर्थों में आश्चर्य वृक्ष कहा जा सकता है। यह एक लंबे समय से एक औषधीय वृक्ष के रूप में उपयोग किया जाता रहा है और ग्रामीण क्षेत्रों की लगभग सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है - चाहे वह निर्माण-काष्ठ हो, ईंधन के रूप में काम में आने वाली लकड़ी हो, चारा हो, तेल हो, उर्वरक हों, कीट-रोधी हों या फिर सर्वव्यापी `दातुन` हो।

आज इसे भारत का सर्वाधिक संभाव्यतायुक्त वृक्ष मान लिया गया है क्योंकि यह सदाबहार प्रकृति (शुष्क क्षेत्रों में पर्णपाती) का है, सर्वाधिक शुष्क और कम पोषक तत्वों वाली मिट्टियों में भी उग सकता है, इसके कई उप-उत्पादों का वाणिज्यिक रूप से उपयोग किया जा सकता है और इसमें पर्यावरण की दृष्टि से लाभदायक गुण हैं (इसलिए इसे भविष्य का वृक्ष भी कहा गया है)। यदि इस वृक्ष के बड़े पैमाने पर बागान लगाने का कार्य हाथ में लिया जाना है, तो इसे विभिन्न्न कृषि-वानिकी प्रणालियों के अंतर्गत कृषि के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में समन्वित किया जाना होगा।


नीम का पेड़ सूखे के प्रतिरोध के लिए विख्यात है। सामान्य रूप से यह उप-शुष्क और कम नमी वाले क्षेत्रों में फलता है जहाँ वार्षिक वर्षा 400 से 1200 मिमी के बीच होती है। यह उन क्षेत्रों में भी फल सकता है जहाँ वार्षिक वर्षा 400 मिमी से कम होती है पर उस स्थिति में इसका अस्तित्व भूमिगत जल के स्तर पर निर्भर रहता है। नीम कई अलग-अलग प्रकार की मिट्टी में विकसित हो सकता है, लेकिन इसके लिये गहरी और रेतीली मिट्टी जहाँ पानी का निकास अच्छा हो, सबसे अच्छी रहती है। यह उष्णकटिबंधीय और उपउष्णकटिबंधीय जलवायु में फलने वाला वृक्ष है और यह 22-32° सेंटीग्रेड के बीच का औसत वार्षिक तापमान सहन कर सकता है। यह बहुत उच्च तापमान को तो बर्दाश्त कर सकता है, पर 4 डिग्री सेल्सियस से नीचे के तापमान में मुरझा जाता है। नीम एक जीवनदायी वृक्ष है विशेषकर तटीय, दक्षिणी जिलों के लिए। यह सूखे से प्रभावित (शुष्क प्रवण) क्षेत्रों के कुछ छाया देने वाले (छायादार) वृक्षों में से एक है। यह एक नाजुक पेड़ नहीं हैं और किसी भी प्रकार के पानी मीठा या खारा में भी जीवित रहता है। तमिलनाडु में यह वृक्ष बहुत आम है और इसको सड़कों के किनारे एक छायादार पेड़ के रूप में उगाया जाता है, इसके अलावा लोग अपने आँगन में भी यह पेड़ उगाते हैं। शिवकाशी (सिवकासी) जैसे बहुत शुष्क क्षेत्रों में, इन पेड़ों को भूमि के बड़े हिस्से में लगाया गया है और इनकी छाया में आतिशबाजी बनाने के कारखाने का काम करते हैं।
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नीम एक बहुत ही अच्छी वनस्पति है जो की भारतीय पर्यावरण के अनुकूल है और भारत में बहुतायत में पाया जाता है। आयुर्वेद में नीम को बहुत ही उपयोगी पेड़ माना गया है। इसका स्वाद तो कड़वा होता है लेकिन इसके फायदे अनेक और बहुत प्रभावशाली है।
१- नीम की छाल का लेप सभी प्रकार के चर्म रोगों और घावों के निवारण में सहायक है।
२- नीम की दातुन करने से दांत और मसूड़े स्वस्थ रहते हैं।
३- नीम की पत्तियां चबाने से रक्त शोधन होता है और त्वचा विकार रहित और कांतिवान होती है। हां पत्तियां अवश्य कड़वी होती हैं, लेकिन कुछ पाने के लिये कुछ तो खोना पड़ता है मसलन स्वाद।
४- नीम की पत्तियों को पानी में उबाल उस पानी से नहाने से चर्म विकार दूर होते हैं और ये खासतौर से चेचक के उपचार में सहायक है और उसके विषाणु को फैलने न देने में सहायक है।
५- नींबोली (नीम का छोटा सा फल) और उसकी पत्तियों से निकाले गये तेल से मालिश की जाये तो शरीर के लिये अच्छा रहता है।
६- नीम के द्वारा बनाया गया लेप बालो में लगाने से बाल स्वस्थ रहते हैं और कम झड़ते हैं।
७- नीम की पत्तियों के रस को आंखों में डालने से आंख आने की बीमारी में लाभ मिलता है(नेत्रशोथ या कंजेक्टिवाइटिस)
८- नीम की पत्तियों के रस और शहद को २:१ के अनुपात में पीने से पीलिया में फायदा होता है और इसको कान में डालने से कान के विकारों में भी फायदा होता है।
९- नीम के तेल की ५-१० बूंदों को सोते समय दूध में डालकर पीने से ज़्यादा पसीना आने और जलन होने सम्बन्धी विकारों में बहुत फायदा होता है।
१०- नीम के बीजों के चूर्ण को खाली पेट गुनगुने पानी के साथ लेने से बवासीर में काफ़ी फ़ायदा होता है।

- नीम का पौधा घर में ऐसे स्थान पर लगायें , जहाँ से पूरे घर से उसकी हवा आ सके
- घर के मुख्य द्वार पर नीम का पौधा अत्यंत शुभ माना जाता है
- अगर वाणी की समस्या हो, या चंचल मन की समस्या हो तो नीम की दातुन जरूर करनी चाहिए
- नीम की लकड़ी के पलंग पर सोने से त्वचा की समस्याएँ दूर होती हैं
- नीम के तेल और छाल के प्रयोग से कुष्ठ रोग सरलता से दूर किये जा सकते हैं
- अगर शनि पीड़ा दे रहा हो तो नीम की लकड़ी की माला धारण करनी चाहिए
- नीम के पत्तों का वन्दनवार लगाने से घर में नकारात्मक उर्जा प्रवेश नहीं करती
- घर में अगर बुजुर्ग हों तो नीम का पौधा जरूर लगाएं और उसकी नियमित देखभाल करते रहें

एक नीम और इसके कितने गुण, इसकी कितनी उपयोगिता। नीम पर्यावरण और जल-वायु को भी
संग्रक्षित करता है, यह प्राण वायु यानि ऑक्सीजन को भी अत्यधिक मात्रा में बनता हैऔर इसी तरह
कार्बन इऑक्साइड को भी सोख्ता है. हमें हमरे जीवन में अधिक से अधिक पेड़ लगाना चाहये और
अपने पर्यावरण की रक्षा करनी चाहये।
"नीम लगाएं पर्यावरण बचाएं।"  

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